Swati Sharma

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दायित्व; एक बदलाव

              “अरे लोकेश बेटा! जल्दी आओ ।” लोकेश अपनी मां की पुकार सुनकर भागते हुए पहुंचा। दोनों ने माया (लोकेश की पत्नी) के कमरे में प्रवेश किया। गर्भवती माया ने एक सुन्दर-सी, प्यारी-सी बिटिया को जन्म दिया। तीनों नवजात बच्ची के साथ अपने घर पहुंचे।
               एक दिन माया जब अपनी बच्ची को सुला रही थी। लोकेश ने आकर उसके कंधे पर हाथ रखते हुए दबी हुई आवाज़ में कहा- “सुनो एक बार ज़रा बाहर आओ तो।” माया ने धीरे से बच्ची को गोद से उतारकर पलंग पर सुला दिया। चुपके से लोकेश के साथ कमरे से बाहर आई, तो आश्चर्य से उसकी आंखें फटी रह गईं। सामने उसके माता-पिता सारा सामान लिए हुए खड़े थे। माया को कुछ समझ नहीं आ रहा था। परन्तु, उस समय वह चुप रही। माता-पिता को उनके कमरे में बैठाकर दोनों अपने कमरे में चले गए।
               माया ने पूछा-“यह सब क्या है लोकेश? तुम मम्मा-पापा को सामान सहित यहां कैसे ले आए? क्या कोई परेशानी है? कोई बात है तो बताओ?" लोकेश ने पानी का गिलास माया को पकड़ाते हुए कहा-“यह लो पानी पियो और शांति से बैठो।” माया को बैठाते हुए लोकेश पुनः बोला -“एक बात बताओ माया क्या तुम्हारे माता-पिता मेरे माता-पिता नहीं हैं? क्या उनके लिए मेरा कोई दायित्व नहीं है? आज से वह हमारे साथ ही रहेंगे और उनकी सारी ज़िम्मेदारी हम दोनों मिलकर उठाएंगे। बिल्कुल वैसे, जैसे मेरे माता-पिता की उठाते हैं। आज से मैं उनका दामाद नहीं, उनका बेटा हूं।”
               माया की आंखों से आंसू छलछला उठे। वह बोली -“लेकिन आपके माता-पिता को इस बात से कोई समस्या हुई तो?” लोकेश ने उसे भरोसा दिलाते हुए कहा- “मैं उनसे बात कर चुका हूं। हम सब एक परिवार हैं, और अब से साथ में ही रहेंगे। हां, यदि मम्मा-पापा तुम्हारी बहन के यहां कुछ दिन घूम कर आना चाहें तो जा सकते हैं। लेकिन उनका स्थाई घर तो अब यही रहेगा।”
            माया ने लोकेश में अचानक आए बदलाव का कारण पूछा तो उसने अपनी सोई हुई बच्ची की ओर इशारा करते हुए कहा-“इस बदलाव के पीछे इस नन्ही-सी परी का विशेष प्रभाव है।” माया बोली -” मैं समझी नहीं।”
               लोकेश ने कहा-“जब हमारी बेटी को मैंने अपनी गोद में लिया था ना। उस दिन मुझे तुम्हारी एवं तुम्हारे माता-पिता की व्यथा समझ में अाई। अतः मुझे यह अहसास हुआ कि जिस प्रकार तुम मेरे माता-पिता का ध्यान रखती हो, उसी प्रकार मेरा भी तो तुम्हारे माता-पिता के प्रति कुछ दायित्व है। तब मैंने यह फैसला लिया कि उनका कोई सगा बेटा नहीं है तो क्या, यह बेटा तो है। अतः मैं उन्हें ज़िद करके मनाकर यहां ले आया।”
            यह सब सुनकर माया की आंखें पुनः भर आईं। धीमे से लोकेश से बोली-“धन्यवाद, आज आपने मुझे दुनिया की सारी खुशियां दे दीं।” उसके माता-पिता और पति के रिश्ते में आए इस नए बदलाव से आज वह बेहद खुश थी।

~नए एवम् सुलझे हुए समाज हेतु एक विचारणीय तथ्य।

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4 Comments

kapil sharma

19-Mar-2021 06:33 PM

बहुत अच्छा मैम

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Swati Sharma

19-Mar-2021 10:12 PM

आपका हार्दिक आभार सर

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Natash

19-Mar-2021 11:05 AM

👍👍👍

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Swati Sharma

19-Mar-2021 02:00 PM

🙏🏻🙏🏻🙏🏻

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